क्या पिता बेटे की अनुमति के बिना संपत्ति बेच सकता है? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाया बड़ा कदम Supreme Court big decision

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Supreme Court big decision: हाल के वर्षों में, सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के बंटवारे के मामले में बेटियों और बेटों के बीच समानता स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। यह लेख इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और उनके प्रभावों पर प्रकाश डालता है।

2005 का संशोधन

2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया गया। इस संशोधन ने हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) में बेटियों और बेटों को समान सहदायिक अधिकार प्रदान किए। हालांकि, इस संशोधन के बाद भी कुछ अस्पष्टताएं बनी रहीं।

विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा का ऐतिहासिक फैसला

11 अगस्त 2020 को, सुप्रीम कोर्ट ने विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले ने दो महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट किया:

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1. बेटियों को जन्म से ही विरासत में अधिकार मिलते हैं।
2. 2005 के संशोधन के लाभ के लिए पिता का जीवित होना आवश्यक नहीं है।

यह फैसला बेटियों के अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम था।

पैतृक संपत्ति में अधिकार

हिंदू कानून के अनुसार, व्यक्ति को जन्म के समय ही पैतृक संपत्ति में अपने हिस्से का अधिकार मिल जाता है। पैतृक संपत्ति वह होती है जो पुरुष वंश की चार पीढ़ियों तक विरासत में मिली हो। एक पुत्र अपने पिता के जीवनकाल में भी पैतृक संपत्ति में अपने हिस्से का दावा कर सकता है।

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सौतेले बेटों के अधिकार

कुछ मामलों में, अदालतें सौतेले बेटों को भी पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी मानने की अनुमति देती हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले में, एक मृत हिंदू महिला के सौतेले बेटे को उसकी संपत्ति का उत्तराधिकारी माना गया।

स्व-अर्जित संपत्ति पर अधिकार

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, बेटे या बेटी को पिता की स्व-अर्जित संपत्ति पर पहला अधिकार होता है, अगर पिता बिना वसीयत छोड़े मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। हालांकि, अगर पिता अपनी इच्छा से संपत्ति किसी और को दे देते हैं, तो बेटा या बेटी उस संपत्ति पर दावा नहीं कर सकते।

सुप्रीम कोर्ट के ये फैसले संपत्ति के मामले में लिंग-आधारित भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। ये फैसले न केवल बेटियों के अधिकारों को सुरक्षित करते हैं, बल्कि समाज में समानता और न्याय के सिद्धांतों को भी मजबूत करते हैं। यह बदलाव भारतीय समाज में महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता और सशक्तिकरण की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।

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