Supreme Court: तलाक एक ऐसा शब्द है जो किसी भी दंपति के जीवन में तब आता है जब उनके रिश्ते में सुधार की कोई संभावना नहीं रह जाती। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने तलाक प्रक्रिया को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जो कई जोड़ों के लिए राहत लेकर आया है।
फैसले की मुख्य बातें
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि जिन शादियों के बेहतर होने की उम्मीद नहीं है, उनके लिए तलाक की प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी की जानी चाहिए। इसके साथ ही, आपसी सहमति के आधार पर तलाक के लिए अब 6 महीने का इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है।
कानूनी आधार
जस्टिस एस के कौल की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत यह अधिकार है। यह फैसला 2014 में दायर शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन केस में किया गया, जहां कपल ने भारतीय संविधान के आर्टिकल 142 के तहत तलाक मांगा था।
मामले का इतिहास
इस मामले को जून 2016 में डिवीजन बेंच द्वारा पांच जजों की संविधान बेंच को भेजा गया था। मुख्य सवाल यह था कि क्या हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के अनुसार आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए निर्धारित 6 से 8 महीने की समय सीमा को समाप्त किया जा सकता है।
नया नियम और उसका प्रभाव
इस फैसले के बाद, अब उन जोड़ों को 6 महीने के अंदर तलाक मिल सकेगा जिनके रिश्ते में सुधार की कोई संभावना नहीं है। यह नियम उन लोगों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है जो पहले फैमिली कोर्ट में जाकर महीनों या वर्षों तक इंतजार करते थे।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला तलाक प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाता है। यह फैसला उन जोड़ों के लिए आशा की किरण है जो लंबे समय से तलाक के लिए संघर्ष कर रहे थे। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि तलाक एक गंभीर कदम है और इसे केवल तभी लिया जाना चाहिए जब रिश्ते को बचाने के सभी प्रयास विफल हो जाएं। यह नया नियम जहां एक ओर तलाक प्रक्रिया को सरल बनाता है, वहीं दूसरी ओर यह भी सुनिश्चित करता है कि जल्दबाजी में कोई फैसला न लिया जाए।
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